Journal: शिक्षा संवाद (ISSN: 2348-5558)
Year: 2024 | Volume: 11 | Issue: 2 | Published on: 2024-12-31
लेखक: आशीष
कूटशब्द: पढ़ना, बात करना, सीखना
भाषा मानव जाति के लिए प्राथमिक है। यह सबसे आवश्यक संज्ञानात्मक क्षमताओं में से एक है जो मनुष्य को समाज में आचरण करने के लिए सशक्त बनाता है। यह उतना ही जैविक कार्य है जितना कि एक सामाजिक कार्य है। यह स्वाभाविक रूप से प्राप्त (एक्वायर) किया जाता है, लेकिन इसमें महारत हासिल करने के लिए सावधानीपूर्वक मार्गदर्शन और शिक्षण की आवश्यकता होती है। इस लेख में जहां भी संभव हो भाषाई और समाजशास्त्रीय सिद्धांतों के आलोक में प्रोफेसर कृष्ण कुमार की पुस्तक “बच्चे की भाषा और अध्यापक” (1996) की समीक्षा की गई है। यह लेख प्रत्येक भाषा शिक्षक के लिए पुस्तक की प्रासंगिकता को सही ठहराने का एक प्रयास है। यह पुस्तक शैक्षणिक तकनीकों में कई आसान सुधारों के बारे में बात करती है जो छोटे बच्चों के बीच बेहतर भाषा समझ और अधिग्रहण सुनिश्चित कर सकते हैं। एक स्पष्ट शैली में लिखी गई यह पुस्तक एक शिक्षक की भूमिका और एक शिक्षक के दृष्टिकोण के छात्र के मानस पर पड़ने वाले भारी प्रभाव पर जोर देती है।
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